नीलकुरिंजी के बारे में
- नीलकुरिंजी फूल नीले बैंगनी रंग के होते हैं‚ जो पश्चिमी घाट के शोला वनों में पाए जाते हैं।
- यह पौधा मंगलादेवी पहाड़ियों से लेकर नीलगिरि पहाड़ियों तक के छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में स्थानिक है।
- वर्तमान में यह पूर्वी घाट में शेवरॉय पहाड़ियों और केरल में अन्नामलाई पहाड़ियों और कर्नाटक में भी पाए जाते हैं।
- इन्हीं फूलों के कारण नीलगिरि पहाड़ियों को ‘नीला पर्वत’ की संज्ञा दी गई है।
- पश्चिमी घाट क्षेत्र में‚ नीलकुरिंजी पौधों की लगभग 70 किस्मों की पहचान की गई है। सबसे लोकप्रिय नीलकुरिंजी ‘स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना’ है‚ जो 12 वर्ष में एक बार खिलता है।
- गौरतलब है कि नीलकुरिंजी की कुछ अन्य दुर्लभ किस्में भी पश्चिमी घाट क्षेत्र में पाई जाती हैं।
- नीलकुरिंजी के पौधे 30से 60 सेमी.की ऊंचाई तक उगते हैं तथा इसमें कोई औषधीय गुण नहीं होता है।
- यह एक उष्णकटिबंधीय पौधे की प्रजाति है‚ जो 1300 से 2400 मीटर की ऊंचाई तक पहाड़ी ढलानों पर पाए जाते हैं।
- ये पौधे भारत के दक्षिणी क्षेत्रों के अन्यत्र विश्व में कहीं नहीं पाए जाते हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य
- 12 जनवरी‚ 2023 को पर्यावरण‚ वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नीलकुरिंजी (स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना) को संरक्षित पौधों की सूची में शामिल करते हुए सूचीबद्ध किया है।
- मंत्रालय ने नीलकुरिंजी को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम‚1972 की अनुसूची III के तहत संरक्षित पौधा घोषित किया है।
प्रमुख बिंदु
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम‚1972 की अनुसूची III के तहत‚ अब नीलकुरिंजी की खेती करना तथा उस पर कब्जे की अनुमति नहीं होगी।
- पौधे को उखाड़ने या नष्ट करने वालों पर अब 25‚000 रुपये का जुर्माना और तीन वर्ष की कैद होगी।
- गौरतलब है कि नीलकुरिंजी का सबसे हालिया खिलना इडुक्की के संथानपारा में कल्लिपारा पहाड़ियों पर एक विशाल क्षेत्र में था।
- एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान‚ नीलकुरिंजी के व्यापक रूप से खिलने के लिए जाना जाता है।
संरक्षण की आवश्यकता क्यों?
- संरक्षण सूची में शामिल करने का उद्देश्य पर्यटकों को कुरिंजी के पौधों में बाधा डालने से रोकने और उसके फूलों को स्मृति चिह्न के रूप में एकत्र करने से प्रतिबंधित करना है।
- स्थानीय लोगों द्वारा इन फूलों को पैकिंग करके पर्यटकों को बेचने के परिणामस्वरूप नीलकुरिंजी पौधों के विस्तार व स्थिति को प्रभावित कर रहा था।
- वृक्षारोपण और आवास के निर्माण से फूलों के क्षेत्रों को संरक्षित करना।
- जंगल की आग से भी पौधों के संरक्षण के लिए प्रभावी कदम उठाना।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम‚1972
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम‚ 1972 को अगस्त‚ 1972 में संसद द्वारा पारित किया गया था। जिसे सितंबर‚ 1972 में अधिनियमित किया गया।
- इस अधिनियम में 66 खण्ड और 6 अनुसूचियां शामिल हैं।
- अधिनियम को देश में मौजूद जानवरों‚पक्षियों और पौधों को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से पेश किया गया था।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूचियां
1.अनुसूची I : इसमें लुप्तप्राय प्रजातियों को शामिल किया है‚ जिन्हें उच्च सुरक्षा व संरक्षण की आवश्यकता है; जैसे – बाघ‚ चीता‚ ब्लू व्हेल आदि।
2. अनुसूची II : इस सूची के अंतर्गत आने वाले जानवरों को उच्च सुरक्षा प्रदान की जाती है‚ ताकि उनका व्यापार और शिकार न हो सके; जैसे- कश्मीर लोमड़ी‚ असमिया मकाक भारतीय लोमड़ी आदि।
3.अनुसूची III और IV : यह सूची उन प्रजातियों के लिए है‚ जो लुप्तप्राय नहीं हैं‚ इसमें संरक्षित प्रजातियां शामिल हैं। लेकिन किसी भी उल्लंघन के लिए दण्ड पहले दो अनुसूचियों की तुलना में कम है।
4. अनुसूची V : इसमें ऐसे जानवर शामिल हैं‚ जिनका शिकार किया जा सकता है; जैसे-चूहे‚कौआ‚ फल चमगादड़ आदि।
5. अनुसूची VI : यह निर्दिष्ट स्थानिक पौधों की खेती और रोपण पर प्रतिबंध आरोपित करता है; जैसे- पिनर प्लांट‚नीला वंदा‚कुठ आदि।